Wednesday, 11 December 2019

सामने आसमान है और जहान है
तुम बताओ किस बस्ती तुम्हारा मकान है
तुम कुर्सी के मालिक हो या अपनी मर्ज़ी के
तुम्हारी कहाँ तक उड़ान है
आसमान में उड़ते उड़ते तुमने जो नज़्म लिखी है
उसको सुनाओ न
बादलों ने जो कहानियां तुम्हे बतलाईं है
उनको भी बतलाओ न
कुछ नहीं .............बस उड़ते परिंदों को देखना
और उनसे हर रोज़
थोड़ा थोड़ा उड़ना सीखना
परिंदो के बीच में रहना
उनसे बातें करनी
उनकी कहानियां सुननी
और ऊपर देख खुद को तलाशना
धीरे धीरे मुझमें बस ख्वाहिशें रह गई
जो इतनी हल्की हैं कि कभी कभी
इक हवा के झोंके के संग
मैं उन पंछियों के साथ
बादलों के बीच
आसमान की सैर कर आता हूँ


या तुम्हारे उड़ने पर भी लगान है

कहानी का अंत क्या है
शुरआत की वजह क्या है


तू नज़्म सुना जैसे कहानी है कोई
जैसे दीवाना है कोई दीवानी है कोई
जैसे मछली है और पानी है कोई

कंकडों के दाएं बाएं से निकलते निकलते
बर्फ से नदी बनने की कहानी है कोई
Go foreign to tell stories to the locals on the streets


कोई और कहानी बनानी थी
किसी और कहानी में चला गया
किताब लिखता लिखता मैं
आँखों के पानी में चला गया
सर्कस की जवानी में चला गया



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