Wednesday, 11 December 2019

मैं जानता हूँ कि मुश्किल है
मगर मैं अपना रास्ता निकाल लूँगा
हाँ कीमत तो चुकानी पड़ती ही है
मगर मैं सड़क किनारे चावल उबाल लूंगा
डर लगना कोई नई बात नहीं
मगर मैं डगमगाती चिराग की लौ संभाल लूँगा
इस घड़ी की रफ़्तार मेरे ख्यालों से धीमी है
सुबह होने से पहले ही
मैं सपनों को कर गुलाल लूँगा
तुम फिक्र मत करो, चाहे रोज़ नहीं
मगर मैं तुम्हारे लिए वक़्त निकाल लूँगा
मंज़िल का तो पता नहीं
मगर जहाँ तक भी पहुँचूँगा
सफ़र को कहानी में ढाल लूँगा

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