Wednesday, 11 December 2019


मैं इक मछुआरा हूँ मछलियों को कहानी सुनाता हूँ
दो पल को हवा और पानी का फ़र्क भूल जाता हूँ

वो पानी के पिंजरे में कैद हैं और मैं हवा के
तो मैं उनसे बुलबुलों के ज़रिए बतियाता हूँ

जब बुलबुले फूटते है न तो मुझे कुछ लफ्ज़ सुनाई देते हैं
इन्हीं लफ़्ज़ों से ही तो मैं नई कहानियां बनाता हूँ

Medical
Engineering
Same story
Every one connects
And when they reply
I get new base for the new poem

क्या इन मछलियों ने समंदर के किनारे
कोई रेत का घर देखा नहीं?

ये मछलियाँ बाहर क्यों नहीं आती
ये रेत से सपनो के महल क्यों नहीं बनाती

किस चीज़ का डर है इन्हें


🔥🔥🔥

मैं जब अपनी कहानी सुनाने की कोशिश करता हूँ
मैं खुद में थोड़ा और गुम जाने की कोशिश करता हूँ

मैं जानता हूँ समझ न आएंगी किसी की मुश्किलात
पर फिर भी थोड़ा ग़म जताने की कोशिश करता हूँ

कोई सुनता नहीं किसी की उलझन, सुलझाने के लिए
मैं फिर भी इक सिरा पकड़ाने की कोशिश करता हूँ

इन आँखों में रोशनरा रहें हैं जो ख्वाब ,उनसे
इन दुनियावी अंधेरो को बुझाने की कोशिश करता हूँ

ये जो आशिक़ नींद में भी देखते हैं वहशत के सपने
मैं बस इनमें फब्बत जगाने की कोशिश करता हूँ

🔥🔥

एक कहानी हर रोज़ मेरे साथ में चलती है
एक मेरी और एक मेरे हाथ में चलती है

मैं अपनी कहानी का किरदार बदलता हूँ
मैं ख़ुद को थोड़ा सा हर बार बदलता हूँ

🔥🔥🔥

ਜੋ ਦਿਲ ਕਹੇ ਮੈਨੂੰ ਮੇਰਾ ਇਹਨਾਂ ਚਾਰ ਦਿਨਾਂ ਚ ਕਰ ਜਾਵਾਂ
ਪਿੱਛੇ ਮੁੜਕੇ ਜਦ ਮੈਂ ਵੇਖਾਂ ਮੈਨੂੰ ਹੋਵੇ ਨਾ ਪਛਤਾਵਾ

ਹਰ ਪਲ ਏਦਾਂ ਮੈਂ ਜੀਵਾਂ ਜਿਵੇਂ ਮਿਲਣਾ ਨਹੀਂ ਦੋਬਾਰਾ
ਬਸ ਰੂਹ ਮੇਰੀ ਖੁਸ਼ ਹੋਵੇ ਜਦ ਇਸ ਸਰਕਸ ਚੋਂ ਜਾਵਾਂ

ਇਹ ਦੁਨੀਆ ਭਾਂਵੇ ਮੈਥੋਂ ਰੁਸ ਜਾਏ ਮੈਥੋਂ ਰੁੱਸਣ ਨਾ ਮੇਰੇ ਚਾ
ਹਰ ਖਵਾਹਿਸ਼ ਦਾ ਹੱਥ ਫੜਕੇ ਓਹਦੀ ਮੰਜ਼ਿਲ ਤੱਕ ਪੁਜਾਵਾਂ

ਬੱਧਣ ਜਿਹੇ ਕਈ ਡਰ ਜਾਂਦੇ ਇਸ ਦੁਨੀਆਂ ਤਲੇ ਮਰ ਜਾਂਦੇ
ਮੈਂ ਇਸ ਪਿੰਜਰੇ ਨੂੰ ਤੋੜ ਤੋਤੇ ਤੋਂ ਬਾਜ਼ ਹੋ ਜਾਵਾਂ



उजाला करने को सूरज का निकलना ज़रूरी नहीं
आंखों का खुलना ज़रूरी है
मोमबत्ती का जलना ज़रूरी है

मंज़िल तक पहुंचने को सड़कों का मिलना ज़रूरी नहीं
बाहर निकलना ज़रूरी है

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