Wednesday, 11 December 2019

मेज़ के ऊपर रोशनी है
और नीचे है अंधेरा
बाहर तो सूरज चढ़ गया है
अंदर न हुआ सवेरा
नीचे क्या है कोई ना देखे
गर्दन का बल सबको दुखे
छेनी सीलम से तराशे सब ही
मिट्टी का हाल कोई ना पूछे
उड़ना था आसमान में अभी और
मूरत हो गई जान
मेज़ के ऊपर सिमट रहें हैं
चेहरा,आंखें और ख्याल
मेज़ के नीचे बिखरा हुआ है
अंतरमन का जाल

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