मोहब्बत को सजाने से डर लगता है
हद से गुज़र जाने से डर लगता है
कही रह न जाऊं अकेला ही ता-उमर
किसी के ज़िंदगी में आने से डर लगता है
इस दिल में हर रोज़ ही फूल खिलते हैं
ख्वाबों में हर शाम ये उसी भवरे से मिलते हैं
बन जाए न अश्क़ों से गहरा नाता कहीं
किसी को हसाने से डर लगता है
किसी के हुस्न को पिरोना चाहता हूँ
लफ़्ज़ों के झरने में धोना चाहता हूँ
कहीं जल न जाएं ये पन्ने मेरे ही हाथों
किसी को शायरी में गाने से डर लगता है
आँखों का नम होना अब लाज़मी सा हुआ
सुनकर किसी आशिक़ की दिल-ए-दास्तां
दर्द भी हँसकर कहता है हर "बद्धन"
अब राह जाते हर दीवाने से डर लगता है
No comments:
Post a Comment