Wednesday, 11 December 2019

तेरा वो गुमसुम सा चलना
वो तेरी आँखों का ढलना
तेरा वो दुनिया में न रलना
मुझे तेरा होने देता है





कभी रास्तों में 'बधन' ज़रा ठहर के तो देख
कभी खुद से सलाह मशवरा कर के तो देख
शायद रास्ते आसाँ हो जाएं किसी मोड़ पर
अपने अंदर की सुरंग में से गुज़र के तो देख

सारी उम्र खुद में ही उलझ चलता रहा तू
सूरज सा निकलता चाँद सा ढलता रहा तू
रोज़ ज़िंदा रहने का ढोंग किया है तूने साकी
कभी इस ढोंग में यूँही ज़रा मर के तो देख व

कई बार ज़िंदगी सामने से चाँद बन के आई
कई बार इस जिस्म पर उसने चाँदनी पहनाई
हर बार रोशनी से मैंने आँखे चुराई है साकी
ज़िंदगी को कभी भी आँख भर के नहीं देखा


कभी मैंने रास्तों में ज़रा ठहर के नहीं देखा
कभी खुद से सलाह मशवरा कर के नहीं देखा
शायद रास्ते आसाँ हो जाते किसी मोड़ पर
अपने अंदर की सुरंग में से गुज़र के नही देखा

कभी रास्तों में ज़रा ठहर 'बधन' के तो देख
कभी खुद से सलाह मशवरा कर के तो देख
शायद रास्ते आसाँ हो जाएं किसी मोड़ पर
अपने अंदर की सुरंग में से गुज़र के तो देख

सारी उम्र खुद में ही उलझ चलता रहा तू
सूरज सा निकलता चाँद सा ढलता रहा तू
ताउम्र चाँद की तरह सिमटता ही रहा तू
तारों की तरह इश्क़ में बिखरकर तो देख


लोग तस्वीर की चार दीवारी को टुकड़ों से भरते हैं

किसी चार दिवारी में एक याद को चिन
एक तस्वीर बनती है
खुले आसमान में

तेरे भुलेखे मैं चाय के कप को सहलाता रहता हूँ


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