सोच....
लोग कहते है आजकल प्यार नामुमकिन है
दिलों का मेल फिल्मों किताबों में ही रह गया
जिस्मों के नशे ने दुनिया को किया है पागल
सच्ची प्रीत का पानी हीर-रांझा के साथ ही बह गया.....
प्रेम के ढायी अक्षरों से अंजान हैं ये लोग
आखों के जादू की समझ से है बड़ी दूर
रूहों का मेल इनके लिए बस खेल बनकर रह गया
जिस्मों से खेलना इनके लिए अब मेल बनकर रह गया...
रीति-रिवाज़ों की दीवारों ने इनको किया है बेबस
दिल करता है इन सब से दूर भाग जाऊँ मैं बस
चाहकर भी मैं इनको समझा नहीं सकता
चाहकर भी इनमें वो जादू वाकिफ़ करा नहीं सकता
मैं भी इनके ही जैसे सोचता था पहले
मानता था प्यार है जिस्मों का मेला
पर तब मै इस मेले से बाहर था निकला
जब पहली बार मैं अपनी आशिकी से मिला.....
लोग कहते है आजकल प्यार नामुमकिन है
दिलों का मेल फिल्मों किताबों में ही रह गया
जिस्मों के नशे ने दुनिया को किया है पागल
सच्ची प्रीत का पानी हीर-रांझा के साथ ही बह गया.....
प्रेम के ढायी अक्षरों से अंजान हैं ये लोग
आखों के जादू की समझ से है बड़ी दूर
रूहों का मेल इनके लिए बस खेल बनकर रह गया
जिस्मों से खेलना इनके लिए अब मेल बनकर रह गया...
रीति-रिवाज़ों की दीवारों ने इनको किया है बेबस
दिल करता है इन सब से दूर भाग जाऊँ मैं बस
चाहकर भी मैं इनको समझा नहीं सकता
चाहकर भी इनमें वो जादू वाकिफ़ करा नहीं सकता
मैं भी इनके ही जैसे सोचता था पहले
मानता था प्यार है जिस्मों का मेला
पर तब मै इस मेले से बाहर था निकला
जब पहली बार मैं अपनी आशिकी से मिला.....
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