Monday, 26 June 2017

ये दिल बड़ा ही गुस्ताख़ है
सब जाने फिर न रुकता है
बस करता है अपनी हर पल
फिर कहे सीने में दुखता है

जब इक पल भी न सुकूँ मिले
तब मुझसे आके पूछे है...

गुस्ताखियां गुस्ताखियां
क्यों हुई हैं ये गुस्ताखियां

इसे हर दिन ही समझाऊं मैं
आँखों की बात न माना कर
जो न हो वो भी देखें ये
दिमाग की राय भी जाना कर

जब कांच सी हालत हो जाये
तब मुझसे आके पूछे है

गुस्ताखियां गुस्ताखियां
क्यों हुई हैं ये गुस्ताखियां

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